LCD display न केवल CRT monitors के तुलना में अलग दिखते हैं बल्कि ये काम भी बहुत ही अलग ढंग से करते हैं. ये CRT monitors के जैसे इतने बड़े और bulky नहीं होते हैं. यहाँ पर glass screen पर electrons को fire नहीं किया जाता है बल्कि LCD में backlight होता है जो की light provide करता है सभी individuals pixels को जिसे की rectangular grid के जैसे arrange किया जाता है.
सभी pixel में red, green और blue sub-pixel मेह्जुद रहता है जिसे की on और off किया जा सकता है. जब pixel के सभी sub-pixel को off कर दिया जाता है तब ये black नज़र आता है. और जब सभी sub-pixel को on कर दिया जाता है तब ये white नज़र आता है. इन सभी individual levels के red, green और blue light को adjust कर million color combinations पाया जा सकता है.
ये तो थी LCD के विषय में कुछ जानकारी, चलिए अब जानते हैं की ये कैसे काम करता है और इसके कितने प्रकार है और दूसरी महत्वपूर्ण जानकारी. तो फिर बिना देरी किये चलिए शुरू करते हैं और जानते हैं की आखिर ये LCD क्या होता है और ये किस तरीके से काम करता है.
एलसीडी क्या है – What is LCD in Hindi
जैसे की मैंने पहले भी कहा है की LCD का Full Form क्या है “Liquid Crystal Display”. इसे सबसे पहले 1888 में discover किया गया था. तब से लेकर आज तक इसका इस्तमाल धीरे धीरे बढ़ने में लगा है. ये एक ऐसी technology है जिसका इस्तमाल display के हिसाब से किया जाता है।
जहाँ पर आप application status, display values, program debugging जैसे बहुत से कार्य कर सकते हैं. LED और Plasma technology के जैसे ही इसमें भी display CRT technology के मुकाबले बहुत ही पतली होती है. LCD बहुत ही कम power का consumption करती है LED और Gas-display के मुकाबले क्यूंकि वो blocking light के principle में काम करते हैं न की Emitting के.
एक LCD आम तोर से either एक passive matrix या एक active matrix display grid से बनी हुई होती है. ये active matrix LCD को thin film transistor (TFT) display भी कहा जाता है।
वहीँ passive matrix LCD में जो grid of conductors होते हैं pixels के साथ वो grid के सभी intersection पर located होते हैं. Current को grid पर दो conductors के across भेजा जाता है किसी भी pixel के लिए. एक active matrix में सभी pixel intersection पर एक एक transistor स्तिथ होते हैं जिससे की इन्हें कम current की जरुरत होती है pixel को जलाने के लिए.
बस इसी कारण ही active matrix display में current को बड़ी आसानी से switch on और off किया जा सकता है जिससे की screen refresh time को भी improve किया जा सकता है।
कुछ passive matrix LCD में dual scanning मेह्जुद रहती है जिसका मतलब है की वो grid को दो बार scan कर सकती हैं उसी current में जितने में की original technology के मदद से सिर्फ एक बार ही scan हो पर रहा था पहले. लेकिन फिर भी active matrix अब भी एक superior technology है.
LCD Working Principle in Hindi
LCD की backlight even light source provide करती है screen के पीछे से. ये light polarized होती है, मतलब की केवल आधी light ही liquid crystal layer के through shine करती है. ये liquid crystal कुछ solid part से, कुछ liquid substance से बनी होती है जिसे की आसानी से twisted किया जा सकता है उसमें electric voltage apply करके.
वो polarized light को block कर देते हैं जब वो off रहता है, लेकिन red, green और blue light reflect करता है जब वो activated रहते हैं.
सभी LCD Screen में matrix of pixels रहते हैं जो की screen पर image को display करते हैं. पहले के LCDs में passive matrix screen हुआ करते थे, जो की control किया करते थे individual pixels को row और column में charge को भेजकर. चूँकि हरेक seconds में बहुत ही limited charges को भेजा जा सकता था इसलिए passive-matrix screen में images blurry नज़र आते हैं जब images को screen के across भेजा जाता था.
आजकल के modern LCDs में active-matrix technology का इस्तमाल होता है जो की thin film transistor contain करते हैं जिन्हें की TFT भी कहा जाता है. इन transistors में capacitors होते हैं जो की individual pixels को enable करते हैं “actively” charge retain करने के लिए. इसलिए active-matrix LCDs ज्यादा efficient और ज्यादा responsive appear होते हैं passive-matrix display की तुलना में.
मुझे पता है की एलसीडी क्या है (What is LCD in Hindi) इसके विषय में आप सभी को पहले से पता होगा. इसके बारे में आप सभी ने पहले ही कहीं सुना और बहुतों ने तो इस्तमाल भी किया होगा. फिर भी ऐसे बहुत से लोग ऐसे भी हो सकते हैं जिन्हें की इसके विषय में कोई भी जानकारी न हो.
LCD का full form होता है “Liquid Crystal Display”. ये एक flat panel display technology होती है जिसे की आम तोर से TVs और Computer monitors में इस्तमाल किया जाता है. उसके साथ इसका इस्तमाल Mobile device के screen के तोर पर भी किया जाता है laptops, tablets और smartphones में.
LCD display न केवल CRT monitors के तुलना में अलग दिखते हैं बल्कि ये काम भी बहुत ही अलग ढंग से करते हैं. ये CRT monitors के जैसे इतने बड़े और bulky नहीं होते हैं. यहाँ पर glass screen पर electrons को fire नहीं किया जाता है बल्कि LCD में backlight होता है जो की light provide करता है सभी individuals pixels को जिसे की rectangular grid के जैसे arrange किया जाता है.
सभी pixel में red, green और blue sub-pixel मेह्जुद रहता है जिसे की on और off किया जा सकता है. जब pixel के सभी sub-pixel को off कर दिया जाता है तब ये black नज़र आता है. और जब सभी sub-pixel को on कर दिया जाता है तब ये white नज़र आता है. इन सभी individual levels के red, green और blue light को adjust कर million color combinations पाया जा सकता है.
ये तो थी LCD के विषय में कुछ जानकारी, चलिए अब जानते हैं की ये कैसे काम करता है और इसके कितने प्रकार है और दूसरी महत्वपूर्ण जानकारी. तो फिर बिना देरी किये चलिए शुरू करते हैं और जानते हैं की आखिर ये LCD क्या होता है और ये किस तरीके से काम करता है.
LCD के प्रकार – Types of LCD
LCD’s को आम तोर से दो Categories में बंटा जा सकता है.
Field Effect Display (FED):
- इस प्रकार के Field Effect Display contains करते हैं “Front” और “Back” polarizer’s at right angles या 90 degree एक दुसरे के साथ.
- इन्हें place किया जाता है 90° में एक दुसरे के साथ
- बिना electrical excitation के, यहाँ पर जो light आती है “Front” polarizer से वो generally revolve हो जाती है 90° में fluid के भीतर.
LCD के Disadvantages
1. Resolution
यहाँ सभी panel के fixed pixel resolution format पहले से determine किये गए होते हैं manufacture के द्वारा जिसे की बाद में बदला नहीं जा सकता. सभी दुसरे image resolutions के लिए rescaling की जरुरत होती है, जिससे बाद में significant image degradation होती है, particularly fine text और graphics के लिए.
2. Interference
LCDs जिनमें की analog input का इस्तमाल होता है वो require करते हैं careful adjustment of pixel tracking/phase ताकि वो reduce or eliminate कर सके digital noise को जो की किसी image पर होता है.
3. Viewing Angle
यहाँ पर Limited viewing angle होता है. इसके साथ Brightness, contrast, gamma और color mixtures भी vary करता है viewing angle के साथ. और large angles में ज्यादा contrast और color reversal भी हो सकता है.
4. Black-Level, Contrast and Color Saturation
LCDs में black और very dark grays को produce करने में तकलीफ होती है. जिसके चलते इसमें CRT के तुलना में lower contrast होती है और low-intensity colors के लिए color saturation भी कम हो जाती है. इसलिए ये dim light वाले जगहों के लिए उपयुक्त नहीं है.
5. White Saturation
LCD की bright end intensity scale आसानी से overloaded हो जाती है, जिसके चलते saturation और compression होता है. इसे control करने के लिए Contrast Control की careful adjustment जरुरत होती है.
6. Bad Pixels and Screen Uniformity
LCDs में बहुत सारे weak और stuck pixels भी हो सकते हैं, जो की permanently on या off होते हैं. कुछ pixels तो improperly अपने adjoining pixels, rows और columns के साथ जुड़े होते हैं. इसके साथ panel भी बहुत बार uniformly illuminated होते हैं backlight के द्वारा जिसके चलते Screen के ऊपर uneven intensity और shading दिखाई पड़ सकती है.
7. Motion Artifacts
इसमें Slow response times और scan rate होने से conversion result भी काफी degrade हो सकती है अगर speed movement हुआ तब और images की rapid change हुआ तब.
8. Aspect Ratio
LCDs में हमेशा से fixed resolution और aspect ratio पाया जाता है. इसलिए इसे बदल पाना संभव नहीं होता है.
9. Cost
अगर इसके कीमत की बात करें तब ये बहुत ही ज्यादा expensive होता है अगर हम CRT से इसकी तुलना करें तब.
Application of LCD
LCD के बहुत सारे Application मेह्जुद है जिसके बारे में आपको में निचे बताने जा रहा हूँ.
बहुत ही Common LCD applications:
- Calculators
- Watches
- Clocks
- Telephones
इसके साथ General Applications of LCDs:
- Computer Monitors (Computer Screens)
- Instrument Panels
- Televisions
- Aircraft cockpit displays
- Signage
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